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सारे सच: झूठ / नवनीत पाण्डे
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वह पहली बार नहीं
आज अंतिम बार मरी है
उसकी देह
नहीं होगी कभी
अब इस आंगन-घर में
अब नहीं सुनाई देगा कहीं
उसका मौन-गीत
अब नहीं छुएंगे उसके हाथ
कभी किसी के पांव
उसने नहीं देखी कभी
और न ही देखने आएगी
ड्राइंगरूम की दीवार पर टंगी
माला पहने अपनी बेपर्दा तस्वीर
उसने कल्पना भी नहीं की होगी
एक दिन सारे झूठ, सच बन जाएंगे
और सारे सच..
झूठ