भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेड़ अभी यह ज़िंदा है / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:35, 22 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इसे लाए थे
हम जंगल से
पेड़ अभी यह ज़िंदा है

जंगल में इसने हवाओं के
धूप-छाँव के ढँग सीखे
इसे याद है
तूफ़ानी रातों में जंगल थे चीख़े

नदियों ने
सींचा था जल से
पेड़ अभी यह ज़िंदा है

गमले में भी सिकुड़-सिमटकर
जीना इसने सीख लिया
ज़हर मिले - उनको भी इसने
प्रभु की इच्छा मान पिया
 

हुआ अपाहिज
मौसम कल से
पेड़ अभी यह ज़िंदा है

इसके आसपास अब भी हैं
ख़ुशबू के भीगे एहसास
इसके ज़िंदा रहते क़ायम
ढाई आखर की बू-बास

ऋतु होगी
इसकी कोंपल से
पेड़ अभी यह ज़िंदा है