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एक जापानी सुबह / कुमार रवींद्र
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आँख 'उगते सूरजों का देश' है
आइए, कल्पित करें
एक जापानी सुबह
धूप 'गीशा गर्ल' है
उजली नहाई
नील नभ का कर रही स्वागत
खिड़कियाँ सारी खुली हैं
दिख रहे हैं
दूर तक के पथ
बुद्ध-प्रतिमा-सा शांत ध्यानामग्न
जल रहा है बह
अतिथि सूरज के लिए
हो रहा है 'चाय-उत्सव'
लॉन के मन में
हाइकू लिखती हवाएँ हैं
टहनियों पर
साँवले वन में
यह नहीं 'हाराकिरी' का है समय
साँस से सपने रहे हैं कह