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ये कौन लोग हैं / राकेश प्रियदर्शी

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लिख रहा हूं मैं भी कविता,

वे हैं आश्चर्यचकित और मन ही मन

क्रोधित


कहे जाने पर मुझे कवि, उन्हें एतराज है,

‘भाषा का ज्ञान मुझे नहीं है’ वे ऐसा कहते हैं,

उन्हें अच्छी नहीं लगती मेरी कविताएं,

उनके मिजाज के अनुकूल नहीं होती

मेरी कविताएं,

मेरी कविताओं का शब्द-शिल्प और

सौन्दर्य नहीं भाता उन्हें


मेरी कविताओं में किसी का प्रशस्ति

गान नहीं होता,

आग उगलती है मेरी कविताएं,

शोषण, जातिवाद और सम्प्रदायवाद

के विरुद्ध आगाज होती हैं मेरी कविताएं


चिढ़ है उन्हें मेरी कविताओं से,

ये कौन / कैसे लोग हैं और क्यों चिढ़ रहे हैं?