कल सपने में 
नदी-पार के जंगल आए 
जंगल में थीं 
हँसती फिरतीं वन-कन्याएँ 
साँस-साँस में उनके थीं 
ऋतु की कविताएँ 
वन के भीतर 
खुली चाँदनी के थे साए  
वहीं रात-भर 
इन्द्रधनुष ने रंग बिखेरा 
तुमने भी कनखी से 
हम पर जादू फेरा 
हाँ, सजनी
कल मेघ सेज पर भी थे छाए 
हम-तुम दोनों 
नदी-किनारे घूमे जी-भर   
बच्चे हमको दिखे 
बनाते बालू के घर 
हमने भी 
आकाशकुसुम थे वहीं खिलाए