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प्रेम के शिला लेख /उमेश चौहान

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प्रेम के शिला लेख

दिल पर पत्थर रख लेने से
पत्थर नहीं हो जाता दिल!

पल पल की व्याकुलता
 छिपालेने से
 शांत झील तो नहीं बन जाता
भीतर घुमड़ता सागर!

लम्बी दूरियाँ
समय के लम्बे अन्तराल
क्षण भर भी तो नहीं रोक सकते
स्मृतियों के आवेग को

सभी दिशाओ से
हर मौसम
हमेशा जकड़े रखता
है मुझे
तुम्हारी यादों के घेरे में!

मौन पढ़ता रहता हूँ मैं
निरन्तर अपने प्रेम के शिला लेख