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झील में अधलेटी चट्टानें / कुमार रवींद्र

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उठला जल है
और झील में अधलेटी चट्टानें

नन्हीं मछली
खोज रही है
सूरज की परछाईं
बूढ़ी सीपी ने रेती पर
संध्याएँ फैलाईं

टापू के
कोने-कोने में फैलीं घनी थकानें

सोच रही हैं
झील-किनारे
फँसी हुई नौकाएँ
कैसे पूरी होंगी अब
जलपरियों की यात्राएँ

पथरा गईं
युवा क्रीड़ाएँ - बच्चों की मुस्कानें
 
पानी लाने गए
सुना है
नदियों के सौदागर
प्यासी पीढ़ी बना रही है
नए-नए प्याऊ-घर

क़तरा-क़तरा
प्यास बुझाने बेचेंगे पहचाने