भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी के उस पार / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:08, 24 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

नदी के उस पार
महानगरी
और उसकी भीड़ अपरंपार

इधर अब भी
पेड़ हैं - पगडंडियाँ हैं
रोशनी है
उधर सड़कें और सड़कें
और उन पर
धुएँ की चादर तनी है

राजपथ पर
एक सपना पत्थरों का
ले रहा आकार

इस किनारे
एक चिड़िया खुले जल पर
उड़ रही है
उधर अनगिन वाहनों की भीड़
फिर अंधी गुफ़ा में
मुड़ रही है

महल के
पिछले सिरे पर
नए युग के बने स्वागत-द्वार

फिर रहे इस ओर
नंगे पाँव बच्चे
सीपियों की खोज करते
'एयरगन' से लैस होकर
उधर के बच्चे
नदी-तट से गुज़रते

आ रहीं हैं
सभ्यता के महावन से
आहटें खूँखार