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हाथ में है जादुई पत्थर / कुमार रवींद्र
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हाँ, सभी के हाथ में है जादुई पत्थर
वही पत्थर
जिसे गोफन में घुमाकर
लोग अगले आसमाँ तक फेंकते हैं
इसी पत्थर से
नदी की
सदानीरा धार को भी छेंकते हैं
और रचते हैं अनूठे फागुनी पतझर
इसी पत्थर की बदौलत
लोग सोने की
बनाते रोज़ लंका
और दुनिया-जहाँ भर की
हाट में
बजता उन्हीं का सदा डंका
यह अलग है बात - उजड़े हैं सभी के घर
पोथियों में सभी धर्मों के
भाई, मानें
ज़िक्र पत्थर का हुआ है
वही पत्थर हुआ
जिसने भूल से भी
जादुई पत्थर छुआ है
जो इसे पिघला सके - टूटे वही आखर