भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परवाह / हरीश करमचंदाणी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:08, 25 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>किसीको किसी की परवाह नहीं सब अपने आप में रहते हैं मस्त मैं समझ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसीको किसी की परवाह नहीं
सब अपने आप में रहते हैं मस्त
मैं समझ नहीं पाया
वह इसे किस अर्थ में कह रहा था

मैंने देखा
वह हँसा
मैं इतमिनान की साँस लूँ
पेशतर मुझे सुनाई दी
उसी की कराह