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और टूटी बाँसुरी होना / कुमार रवींद्र

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और...
टूटी बाँसुरी होना समय का
                        यही सच है


नदी बहकर आ रही है
गए-युग से
आँसुओं की
आहटें भी पास हैं बिल्कुल
वनैले जंतुओं की

हो रहा है
हर तरफ माहौल भय का
                       यही सच है

जो अलौकिकता रही थी
आँख में
वह चुक चुकी है
महासमरों की पुरानी अनी
पाँवों में भुँकी है

प्रश्न भी
धुँधला गया है जय-अजय का
                        यही सच है

रास होना
एक पल का था करिश्मा
हुआ ओझल
बाँसुरी भी क्या करेगी
वक़्त ही हो रहा पाग़ल

वक़्त को भी
चाहिए मौसम प्रलय का
                      यही सच है