वह कोई सपना नहीं 
छू सकता हूँ मैं उसे 
आँसू की तरह 
आँख से बहकर 
हौले से लुढकने तक
वह सिर्फ मेरा हैं 
फिर मिट्टी में
कण की शक्ल अख्तियार करते हुए 
जान लेता हूँ मैं
जीवन के उच्छ्वास 
मैं भय से सिहर जाता हूँ
तब नहीं आता पास तुम्हारे
तुम्हे भय से नजदीकियां पसंद नहीं 
मैं उससे मुक्त हो
चाहता आना पास तुम्हारे 
प्रेम तुम्हारा पाने को