भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

`दहलीज' चित्र-५ /रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:02, 26 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> दहलीज तक मेरी, वे आए जरूर थे, प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहलीज तक मेरी,
वे आए जरूर थे,
पर जाने क्या हुआ,
रास्ते बदल गए।



हम सिसकियाँ भरते रहे,
दहलीज के इस पार,
आँखों में अश्रु लेके,
वे भी चले गए।



दहलीज-ए- दायरा,
कुछ इतना बड़ा हुआ,
ताउम्र कैद बन रहे,
उनके इन्तज़ार में।




दहलीज के इस पार,
वे भी न आ सके,
हम लांघ कर दहलीज को,
न जा सके उस पार।