भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कन्फैशन / माया मृग

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 26 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माया मृग |संग्रह=...कि जीवन ठहर न जाए / माया मृग }} {{KKC…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हम दोनों को विरासत में मिली,
एक सी ईमानदारियां,
एक सी चालाकियां।
बरसों ढोते रहे हम,
अपने-अपने हिस्से की,
ईमानदारियां-चालाकियां।

आज हम दो नेक बन्दे,
एक वसीयत के दो उत्तराधिकारी
आमने-सामने बैठे,
हकीकतों को खोलने।

तुमने ईमानदारी से स्वीकार की
अपनी चालाकियां,
और मैंने बड़ी चालाकी से
स्वीकार की अपनी ईमानदारियां !