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एक आग तो बाक़ी है अभी / प्रतिभा कटियार

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उसकी आँखों में जलन थी
हाथों में कोई पत्थर नहीं था ।
सीने में हलचल थी लेकिन
कोई बैनर उसने नहीं बनाया
सिद्धांतों के बीच पलने-बढऩे के बावजूद
नहीं तैयार किया कोई मैनिफेस्टो ।

दिल में था गुबार कि
धज्जियाँ उड़ा दे
समाज की बुराइयों की ,
तोड़ दे अव्यवस्थाओं के चक्रव्यूह
तोड़ दे सारे बाँध मज़बूरियों के
गढ़ ही दे नई इबारत
कि जिंदगी हँसने लगे
कि अन्याय सहने वालों को नहीं
करने वालों को लगे डर

प्रतिभाओं को न देनी पड़ें
पुर्नपरीक्षाएँ जाहिलों के सम्मुख
कि आसमान ज़रा साफ़ ही हो ले
या बरस ही ले जी भर के
कुछ हो तो कि सब ठीक हो जाए
या तो आ जाए तूफ़ान कोई
या थम ही जाए सीने का तूफ़ान

लेकिन नहीं हो रहा कुछ भी
बस कंप्यूटर पर टाइप हो रहा है
एक बायोडाटा
तैयार हो रही है फ़ेहरिस्त
उन कामों को गिनाने की
जिनसे कई गुना बेहतर वो कर सकता है ।

सारे आंदोलनों, विरोधों और सिद्धान्तों को
लग गया पूर्ण विराम
जब हाथ में आया
एक अदद अप्वाइंटमेंट लेटर....