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गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 8

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098.
रागसारङ्ग

भूपके भागकी अधिकाई |
टूट्यो धनुष, मनोरथ पूज्यौ, बिधि सब बात बनाई ||

तबतें दिन-दिन उदय जनकको जबतें जानकी जाई |
अब यहि ब्याह सफल भयो जीवन, त्रिभुवन बिदित बड़ाई ||

बारहि बार पहुनई ऐहैं राम लषन दोउ भाई |
एहि आनन्द मगन पुरबासिन्ह देहदसा बिसराई ||

सादर सकल बिलोकत रामहि, काम-कोटि छबि छाई |
यह सुख समौ समाज एक मुख क्यों तुलसी कहै गाई ||