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स-चेत स्वीकार / माया मृग
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ओ प्रियतमा !
तुम्हारे चेहरे पर गहारती झाइयां
तुम्हारे गुजरे हुए कल में
झेली हुई धुप के निशान हैं।
सूरज की एक-एक किरण से
रोशन के लिए
कितना लड़ी हो तुम !
- और तब से लगातार
उकरता रहा तुम्हारा इतिहास,
चेहरे के सुनहरी पृष्ठ पर।
इन्हें छिपाओं मत प्रिय,
दुपट्टे से ढंकने की
कोशिश न करो।
मेरी प्रियतमा
मैं तुम्हें
तुम्हारे पूरे अतीत सहित
स्वीकार करता हूँ।