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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 36 से 50/पृष्ठ 13

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चित्र-बिचित्र बिबिध मृग डोलत डोङ्गर डाँग |
जनु पुरबीथिन बिहरत छैल सँवारे स्वाँग ||

नाचहिं मोर, पिक गावहिंस सुर बर राग बँधान |
निलज तरुन-तरुनी जनु खेलहिं समय समान ||

भरि भरि सुण्ड करिनि-करि जहँ तहँ डारहिं बारि |
भरत परसपर पिचकनि मनहु मुदित नर-नारि ||

पीठि चढ़ाइ सिसुन्ह कपि कूदत डारहि डार |
जनु मुँह लाइ गेरु-मसि भए खरनि असवार ||

लिये पराग सुमनरस डोलत मलय-समीर |
मनहु अरगजा छिरकत, भरत गुलाल-अबीर ||

काम कौतुकी यहि बिधि प्रभुहित कौतुक कीन्ह |
रीझि राम रतिनाथहि जग-बिजयी बर दीन्ह ||

दुखवहु मोरे दास जनि, मानेहु मोरि रजाइ |
भलेहि नाथ माथे धरि आयसु चलेउ बजाइ ||

मुदित किरात-किरातिनि रघुबर-रुप निहारि |
प्रभुगुन गावत नाचत चले जोहारि जोहारि ||

देहिं सीस, प्रसंसहिं मुनि सुर बरषहिं फूल |
गवने भवन राखि उर मूरति मङ्गलमूल ||

चित्रकूट-कानन-छबि को बरनै पार |
जहँ सिय-लषनसहित नित रघुबर करहिं बिहार ||

तुलसिदास चाँचरि मिस कहे राम-गुनग्राम |
गावहिं, सुनहिं नारि-नर, पावहिं सब अभिराम ||