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भरतजी अयोध्यामें
ऐसे तैं क्यों कटु बचन कह्यो री ?
राम जाहु कानन, कठोर तेरो कैसे धौं हृदय रह्यो, री ||
दिनकर-बंस, पिता दसरथ-से, राम-लषन-से भाई |
जननी !तू जननी ?तौ कहा कहौं, बिधि केहि खोरि न लाई ||
हौं लहिहौं सुख राजमातु ह्वै, सुत सिर छत्र धरैगो |
कुल-कलङ्क मल-मूल मनोरथ तव बिनु कौन करैगो ?||
ऐहैं राम, सुखी सब ह्वैहैं, ईस अजस मेरो हरिहैं |
तुलसिदास मोको बड़ो सोच है, तू जनम कौनि बिधि भरिहै ||