भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़यालों के ज़माने सामने हैं / अशोक आलोक

Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक आलोक |संग्रह= }} <poem> ख़यालों के ज़माने सामने ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़यालों के ज़माने सामने हैं
हक़ीक़त और फ़साने सामने हैं
मेरी ही उम्र की परछाइयां बन
मेरे बच्चे सयाने सामने हैं
कहानी ज़िन्दगी की है पुरानी
नएपन के तराने सामने हैं
तेरी ख़ामोशियों के सिलसिलों में
मेरे सपने सुहाने सामने हैं
नहीं वादे निभा सकने के बदले
कई दिलकश बहाने सामने हैं