भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 10

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(70)

भरत भए ठाढ़े कर जोरि |
ह्वै न सकत सामुहें सकुचबस समुझि मातुकृत खोरि ||

फिरिहैं किधौं फिरन कहिहैं प्रभु कलपि कुटिलता मोरि |
हृदय सोच, जलभरे बिलोचन, नेह देह भै भोरि ||

बनबासी, पुरलोग, महामुनि किए हैं काठके-से कोरि |
दै दै श्रवन सुनिबेको जहँ तहँ रहे प्रेम मन बोरि ||

तुलसी राम-सुभाव सुमिरि, उर धरि धीरजहि बहोरि |
बोले बचन बिनीत उचित हित करुना-रसहि निचोरि ||