भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 81 से 89/पृष्ठ 2
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(82)
जानी है सङ्कर-हनुमान-लषन-भरत राम भगति |
कहत सुगम, करत अगम, सुनत मीठी लगति ||
लहत सकृत, चहत सकल, जुग जुग जगमगति |
राम-प्रेम-पथतें कबहुँ डोलति नहिं, डगति ||
रिधि-सिधि, बिधि चारि सुगति जा बिनु गति अगति |
तुलसी तेहि सनमुख बिनु बिषय-ठगिनि ठगति ||