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गीतावली अरण्यकांड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 5

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आश्रम निरखि भूले, द्रुम न फले न फूले,
अलि-खग-मृग मानो कबहुँ न हे |
मुनि न मुनिबधूटी, उजरी परनकुटी,
पञ्चबटी पहिचानि ठाढ़ेइ रहे ||

उठी न सलिल लिए, प्रेम प्रमुदित हिए,
प्रिया न पुलकि प्रिय बचन कहे |
पल्लव-सालन हेरी, प्रानबल्लभा न टेरी,
बिरह बिथकि लखि लषन गहे ||

देखे रघुपति-गति बिबुध बिकल अति,
तुलसी गहन बिनु दहन दहे |
अनुज दियो भरोसो, तौलों है सोचु खरो सो,
सिय-समाचार प्रभु जौलों न लहे ||