भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / नील कमल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 6 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिता कहता है कहानी
चिड़िया की

चिड़िया रोज़ सुबह निकल पड़ती है
दानों की तलाश में दूर-दूर तक

चिड़िया रोज़ ही लौट आया करती है
घोंसले में, बच्चों की ख़ातिर

चिड़िया बनाती हैं घोंसले
बर्फ़ पड़ने से पहले ही लाती है
ढेर सारे दाने बुरे वक़्त के लिए
चिड़िया रखती है ख़याल अपने बच्चों का

‘जैसे आप रखते हैं, मेरा ख़याल’,
कहता है बच्चा पिता से
क्या यही नहीं है कविता ?