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लिखते हुए / भगवत रावत

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एक चेहरा वक्ष से सटा हुआ

कटा हुआ अपने आप से

देख रहा है सूनी छत लगातार


सुनो

मैं यहाँ हूँ

छाती के बिल्कुल क़रीब

साँसें सुनते हुए

और

लिखते हुए ।