भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 11 से 20 तक/पृष्ठ 7
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:24, 9 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(17)
राग जैतश्री
सुनहु राम बिश्रामधाम हरि! जनकसुता अति बिपति जैसे सहति |
"हे सौमित्रि-बन्धु करुनानिधि!मन महँ रटति, प्रगट नहिं कहति ||
निजपद-जलज बिलोकि सोकरत नयननि बारि रहत न एक छन |
मनहु नील नीरजससि-सम्भव रबि-बियोग दोउ स्रवत सुधाकन ||
बहु राच्छसी सहित तरुके तर तुम्हरे बिरह निज जनम बिगोवति |
मनहु दुष्ट इंद्रिय सङ्कट महँ बुद्धि बिबेक उदय मगु जोवति ||
सुनि कपि बचन बिचारि हृदय हरि अनपायनी सदा सो एक मन |
तुलसिदास दुख-सुखातीत हरि सोच करत मानहु प्राकृत जन ||