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अतिहि अधिक दरसनकी आरति |
राम-बियोग असोक-बिटपतर सीय निमेष कलपसम टारति ||
बार-बार बर बारिजलोचन भरि भरि बरत बारि उर ढारति |
मनहु बिरहके सद्य घाय हिये लखि तकि-तकि धरि धीरज तारति ||
तुलसिदास जद्यपि निसिबासर छिन-छिन प्रभुमूरतिहि निहारति |
मिटति न दुसह ताप तौ तनकी, यह बिचारि अंतर गति हारति ||