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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 10

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राग बिलावल

सो दिन सोनेको, कहु, कब एहै !
जा दिन बँध्यो सिन्धु त्रिजटा! सुनि तू सम्भ्रम आनि मोहि सुनैहै ||

बिस्व-दवन सुर-साधु-सतावन रावन कियो आपनो पैहै |
कनकपुरी भयो भूप बिभीषन, बिबुध-समाज बिलोकन धैहै ||

दिब्य दुन्दुभी, प्रसंसिहैं मुनिगन, नभतल बिमल बिमाननि छैहै |
बरषिहैं कुसुम भानुकुल-मनिपर, तब मोको पवनपूत लै जैहै ||

अनुज सहित सोभिहैं कपि महँ, तनु-छबि कोटि मनोजहि तैहै |
इन नयनन्हि यही भाँति प्रानपति निरखि हृदय आनँद न समैहै ||

बहुरो सदल सनाथ सलछिमन कुसल कुसल बिधि अवध देखैहै |
गुर, पुरलोग, सास, दोउ देवर, मिलत दुसह उर तपनि बुतैहै ||

मङ्गल-कलस, बधावने घर-घर, पैहैं माँगने जो जैहि भैहै |
बिजय राम राजाधिराजको, तुलसिदास पावन जस गैहै ||