लगा कहाँ कब रोग हमें
करते रहे सचेत
बराबर
समय-समय पर लोग हमें,
सच को सच
कहने का जाने
लगा कहाँ कब रोग हमें!
लोकतंत्र में भी
सच कहना
एक बगावत है,
बैल मुझे आ मार
गाँव की
कहीं कहावत हैय
इसी जुुर्म में
चढ़ा रहा है
सूली पर आयोग हमें!
सच के लिए
उठाने पड़ते
खतरे कई-कई,
सच्चाई के
आड़े आती
मुश्किल नई-नईय
सच के खातिर
पड़े झेलने
कई-कई अभियोग हमें!
कहते सत्यमेव जयते
पर जीते-
झूठ फरेब रहे,
गाँधी की फोटो
के नीचे
होते सारे ऐब रहेय
सब की तरह न
आ पाये ये
सच के कई प्रयोग हमें!