भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिठास बतरस की / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:04, 10 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> प्यारे, ये है मिठ…)
प्यारे, ये है मिठा...स बतरस की.
प्रेम पगीं बतियों के क्या माने,
स्वाद चखे जो, बस वो ही जाने,
हर कोई इसे कहाँ पहचाने?
प्यारे, ये है मिठा...स बतरस की.
बातें जब चलें तो चलती जाएँ,
जलतरंग जैसी बजती जाएँ,
भारी मन हल्का करती जाएँ,
प्यारे, ये है मिठा...स बतरस की.
बातें पलाशों जैसी दहकें,
बातें गुलाबों जैसी महकें,
बातें परिंदों जैसी चहकें,
प्यारे, ये है मिठा...स बतरस की.
बातों से मैल सभी धुल जाएँ,
मन की गांठें सारी खुल जाएँ,
बातों के हम कितने गुण गायें,
प्यारे, ये है मिठा...स बतरस की.