भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/ पृष्ठ 6

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 11 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(16)
राग बिलावल

रघुबर-रूप बिलोकु, नेकु मन |
सकल लोक-लोचन-सुखदायक, नखसिख सुभग स्यामसुन्दर तन ||

चारु चरन-तल-चिन्ह चारि फल चारि देत परचारि जानि जन |
राजत नख जनु कमल-दलनिपर अरुन-प्रभा-रञ्जित तुषार-कन ||

जङ्घा-जानु आनु कदली उर, कटि किङ्किनि, पटपीत सुहावन |
रुचिर निषङ्ग, नाभि, रोमावलि, त्रिबलि, बलित उपमा कछु आव न ||

भृगुपद-चिन्ह, पदिक, उर सोभित, मुकुतमाल, कुङ्कुम-अनुलेपन |
मनहुँ परसपर मिलि पङ्कज-रबि प्रगट्यो निज अनुराग, सुजस घन ||

बाहु बिसाल ललित सायक-धनु, कर कङ्कन केयूर महाधन |
बिमल दुकूल-दलन दामिनि-दुति, यज्ञोपवीत लसत अति पावन ||

कम्बुग्रीव, छबि सींव, चिबुक, द्विज, अधर, कपोल, बोल, भय-मोचन |
नासिक सुभग, कृपापरिपूरन तरुन अरुन राजीव बिलोचन ||

कुटिल भ्रुकुटिबर, भाल तिलक रुचि, सुचि सुन्दरता स्रवन-बिभूषन |
मनहुँ मारि मनसिज पुरारि दिय ससिहि चाप सर-मकर अदूषन ||

कुञ्चित कच, कञ्चन-किरीट सिर, जटित ज्योतिमय बहुबिधि मनिगन |
तुलसिदास रबिकुल रबि-छबि कबि कहि न सकत सुक-सम्भु-सहसफन ||