भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस बेरुखी से प्यार कभी छिप नहीं सकता / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:05, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…)
इस बेरुखी से प्यार कभी छिप नहीं सकता
तू भी है बेकरार, कभी छिप नहीं सकता
तू कुछ न कह, निगाहें कहे देती हैं सभी
रातों का यह खुमार कभी छिप नहीं सकता
मंजिल भले ही गर्द के पांवों से छिप गयी
मंजिल का एतबार कभी छिप नहीं सकता
मजबूरियां हज़ार हों मिलने में प्यार को
हों जब निगाहें चार, कभी छिप नहीं सकता
पत्तों ने ढँक लिया हो तेरा बांकपन गुलाब
आयेगी जब बहार, कभी छिप नहीं सकता