Last modified on 28 जून 2011, at 21:51

अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले / पद्माकर

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:51, 28 जून 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले ,
अधखुले बैष नख रेखन के झलकैं ।
कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,
अधखुले छहरि छराके छोर छलकैँ ।
भोर जग प्यारी अध ऊरध इतै की ओर ,
भायी झिकि झिरकि उघारि अध पलकैं ।
आँखै अधखुलीँ अधखुली खिरकी है खुली ,
अधखुले आनन पै अधखुली अलकैँ ।

पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।