भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शेष जीवन / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:49, 4 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगलेश डबराल |संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल }} प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पुराने बक्से के ऊपर कई बक्से हैं

वे गिरते नहीं

खिड़की के सामने मेज़ पर

फ़्यूज़ हुए बल्ब रखे हैं

कैलेंडरों में छपे सुंदर बच्चों और

जीर्णशीर्ण देवताओं की तस्वीरें वैसे ही चिपकी हैं

उनके पीछे दीवारों की पपड़ियाँ

गिरती रहती हैं

काँच से मढ़ी तस्वीरें उनकी कहानी कहती हैं

जो कभी-कभी लौटते हैं

या नहीं लौटते


कीलों पर टँगे कपड़े

अपना शेष जीवन जीते हैं

दरवाज़ा खोलकर भीतर आने पर

सन्नाटा एक कमरे से दूसरे कमरे में जाता है.


(रचनाकाल : 1992)