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बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं / गुलाब खंडेलवाल


बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं
हम मुसाफिर सराय आम के हैं

काम अपना है उनको पहुँचाना
ख़त सभी दूसरों के नाम के हैं

है ये किस शोख़ की गली, यारो!
लोग चलते कलेजा थाम के हैं

जब हमें लौटना नहीं है यहाँ
फिर ये वादे तेरे किस काम के हैं

उनके आने से आ गयी है बहार
वरना हम तो गुलाब नाम के हैं