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मुट्ठी भर सपना / गौतम अरोड़ा

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केई बार
जद आप म्हारे दोळे व्हिया,
म्हे,
म्हारी मुट्ठी आभे सामी ताण,
आप सामी उभो व्हियो,
श्रीमान,
म्हारी आ कोसिस,
आपने हरावन के, डरावन सारु नी ही
आ तो ही फकत, की बचावन सारु ,
क्योक,
इन मुट्ठी में इज तो बंद है ,
म्हारा मुट्ठी भर सुपना
म्हारो बैत भर आकास !