भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुट्ठी भर सपना / गौतम अरोड़ा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:59, 2 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गौतम अरोड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>केई बार जद आप म…)
केई बार
जद आप म्हारे दोळे व्हिया,
म्हे,
म्हारी मुट्ठी आभे सामी ताण,
आप सामी उभो व्हियो,
श्रीमान,
म्हारी आ कोसिस,
आपने हरावन के, डरावन सारु नी ही
आ तो ही फकत, की बचावन सारु ,
क्योक,
इन मुट्ठी में इज तो बंद है ,
म्हारा मुट्ठी भर सुपना
म्हारो बैत भर आकास !