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जाने न देना / प्रयाग शुक्ल

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आकाश को जाने न देना

अपनी पकड़ से ।

उसमें हैं तुम्हारे मेरे रंग ।


जब हम खिड़की खोलेंगे

ट्रेन की । कमरे की ।

दिखेंगे नहीं क्या हम-तुम

एक-दूसरे को ।

उसमें ।