भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृगमरीचिका / विजय कुमार पंत

Kavita Kosh से
Abha.Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 3 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> संबंधों से सीखना चाहत…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संबंधों से
सीखना चाहता था
जीवन जीने की कला
अनुभवी होती है
बूढी नजरें, ऐसा सुना करता था अक्सर
आज भी....
रोकते रहते है कदम
अनसुलझे संबंधो के ताने बाने
और रह रह कर मन
उलाहने देता रहता है,
चरमराये संबंधो को अस्त-व्यस्त देखकर
फिर से मैं उठाता हूँ
घुटने टेक चुकी अदम्य इच्छाशक्ति को
ताकि कर सकूं पुनर्जीवित संबंधो को
अथक प्रयासों के बाद
यही समझ पाया मन
कि
तुम्हारे सब संबंधो का प्रारंभ भी
शरीर से होता है और अंत भी शरीर पर
जिन्हें मैं खोजता रहा हमारी आत्माओं में
क्षितिज पर सुबह और शाम की तरह ...जो कभी मिल ना सकी