Last modified on 6 जुलाई 2011, at 22:35

रोटी कब तक पेट बाँचती / कविता वाचक्नवी

Kvachaknavee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:35, 6 जुलाई 2011 का अवतरण (वर्तनी सुधार)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


रोटी कब तक पेट बाँचती?


सत्ता के संकेत कुटिल हैं
ध्वनियों का संसार विकट
विपदा ने घर देख लिए हैं
नींवों पर आपद आई
वंशी रोते-रोते सोई
पुस्तक लगे हथौड़ों-सी
उलझन के तख़्तों पर जैसे
पढ़े पहाड़े - कील ठुँकें,
दरवाजे बड़-बड़ करते हैं
सीढ़ी धड़-धड़ बजती है
रोटी अभी सवारी पर चढ़
धरती अंबर घूमेगी
दुविधाओं के हाथों में बल नहीं बचा
सुविधाएँ मनुहार-मनौवत भिजवाएँ।


रोटी कब तक पेट बाँचती?