भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रचना-बहुत कुछ होना है / राजेश चड्ढ़ा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 8 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>रचा जाता है बहुत कुछ- कला और भाव-पक्ष की, सीमाओं के बाहर भी, भाव-प…)
रचा जाता है
बहुत कुछ-
कला और
भाव-पक्ष की,
सीमाओं के बाहर भी,
भाव-पूर्ण।
रचा जाता है
बहुत कुछ-
सार्थक ध्वनि समूह
के बिना भी,
मर्मस्पर्शी।
रचा जाता है
बहुत कुछ-
शब्दार्थ योजना
के बगैर भी,
प्रवाहशील।
रचना-
बहुत कुछ
होना है।