Last modified on 8 जुलाई 2011, at 21:42

स्वर्ण-किरण / एम० के० मधु

योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:42, 8 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० के० मधु |संग्रह=बुतों के शहर में }} <poem> पंचवटी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
पंचवटी को रौंदता
कुलाचें भरता
वह सोने का हिरण
मारीच की आत्मा लिए
सपने बिखेरता
वह स्वर्ण-किरण

ॠषियों का वन
मिट्टी का कण
फूल-पत्तों का मन
चांदनी-चमन
सब रोक रहे हैं
उसके चंचल चरण
किन्तु उसके छलिया नयन
बेच रहे धरती
और नीला गगन
वह सोने का हिरण
सपनों को बेचता
वह स्वर्ण-किरण।