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अनंत से परे / एम० के० मधु

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आकाश साफ़ था
स्वप्न पंख लगा
सरपट भाग रहा था
और मैं उसके पीछे
तेज़
और तेज़
प्रकाश की गति में,
किन्तु स्वप्न के पंख में तो
जैसे अनन्त की गति आ गई थी
पकड़ में आते-आते
फिसल जाता था
और मैं
अन्दर ही अन्दर
एक जाल बुन रहा था
उसे बांधने के लिए
या
बाज से मांग रहा था
उसके दो पंख
स्वप्न के पंख नोंच लेने के लिये।