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नींद कैसे हो / कुमार रवींद्र

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घंटियाँ बजतीं अँधेरे आयनों के पार
                            नींद कैसे हो
 
है निरुत्तर रात यह
आहट अकेली है
साँस ने
घुटती हुई आवाज़ झेली है
 
खाँसते हैं डरे-उड़के द्वार
                   नींद कैसे हो
 
आँख में है बीज सूरज के
वही पिछले दिन
खोलना लेकिन अँधेरे का
है नहीं मुमकिन
 
धूप का बासी बचा संसार
                  नींद कैसे हो
 
बोलना है लाज़िमी
वैसे सबेरे का
कंठ में सोए
हवा के मूक डेरे का
 
साँस पर है अस्थियों का भार
                  नींद कैसे हो