भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदले माहौल में / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 11 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)
मौसम के साथ-साथ चलिए
अरे यार
आप भी बदलिए
देखिए हवाओं के
रँगे हुए चेहरे
क्या हुआ
अगर नीचे हैं सूखे सेहरे
नकली इन फूलों से अपने को छलिए
लादे हैं
फटे हुए आप ये गदेले
नंगों की भीड़ में
आप हैं अकेले
बदले माहौल में आप ज़रा ढलिए
सुनिए मत
बरगद की खुरदुरी दुआएँ
रेशमी मुखौटों से
सीखिए अदाएँ
लोग बहुत सँभले हैं- आप भी सँभलिए