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ज़िन्‍दा इंसान हूँ मैं / अरुणा राय

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ज़िन्‍दा इंसान हूँ मैं
 
सोहबत
चाहिए तुम्‍हारी
मुकम्‍मल
 
लाश नहीं हूँ
कि
शब्‍दों के फूल
 
चढ़ाते
चली जाओ...।