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दिन‘र रात / कन्हैया लाल सेठिया

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बीततां ही
दिन पतझर
आग्यो
गगण वन में
बसन्त,
फूटगी
तम रूंखड़ै रै
रूं रूं में
तारक मींझर
फैलगी
चौफेर दिसावां में
उजास री भीणी मैक
बाजण लागग्यो
मतेई
मन मुरली पर
मिलण रो गीत
सुण रै आवै
खितिज ओट स्यूं
निकल‘र
चन्द्रमुखी राधा !