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छवि को सदन मोद मंडित / घनानंद
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- कवित्त
- कवित्त
छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
- तृषित चखनि लाल, कब धौ दिखाय हौ।
- तृषित चखनि लाल, कब धौ दिखाय हौ।
चटकीलो भेख करें मटकीली भाँति सों ही
- मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
- मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
लोचन ढुराय कछु मृदु मुसक्याय, नेह
- भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
- भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रानप्यारे,
- कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।3।।
- कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।3।।