- कवित्त
- कवित्त
छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
- तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ।
- तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ।
चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही
- मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
- मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह
- भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
- भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे,
- कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।5।।
- कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।5।।