भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वहै मुसक्यानि / घनानंद

Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 15:41, 7 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} ::::'''कवित्त'''<br><br> वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवित्त

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै

लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।

वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,

वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।

वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,

वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।

आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,

सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।। 4 ।।