बसंत के गीत वो गाएं
जिनके कंधे पर
पसरी हो
सुगंध की बेल
...मैं तक रहा हूँ राह
फसल के सकुशल
घर आने की
मैं दो कोमल खुली बाँहों की पुकार नहीं सुन पाता
मेरे आसरे जीता है पूरा एक कुनबा
सच कहता हूँ
मैंने बसंत की अगवानी में
बोया ही नहीं गेंदे का फूल